First posted online on March 1st 2014
धड़कन बन गयीं, आशा बन गयीं,
अनबोले, असीमित रानी बन गयीं
इक मिट्टी में रुन्दने पर जैसे,
दो बर्तन, पर इक स्पंदन हो
तुम तो मेरी कल्पतरु हो
तुम तो मेरी कल्पतरु हो
एकाकी का साथ बन गयीं,
मरू में तरु की छाह बन गयीं
धीर, गंभीर, चुलबुल, एकाकी कभी,
कभी अनजानी सी, अब श्वास रमी हो
तुम तो मेरी कल्पतरु हो
तुम तो मेरी कल्पतरु हो
जान बन गयीं अब तुम मेरी
प्राणों की अब डोर बन गयीं
क्यों हो, जो हो, अब शायद पर,
अंत समय तक हम-बंधन हो
तुम तो मेरी कल्पतरु हो
तुम तो मेरी कल्पतरु हो… रानी